हिमवाणी
हमीरपुरः जिला हमीरपुर में रेशम पालन व डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अब तक ६ करोड़ ३४ लाख रुपए व्यय किए जा चुके हैं। यह जानकारी उपायुक्त हमीरपुर, श्री आर सेलवम ने रेशम पालन एवं डेयरी उद्योग की कल समीक्ष बैठक की अध्यक्षता करते हुए दी। उन्होंने बताया कि जिला ग्रामीण विकास अभिकरण के माध्यम से अब तक ७,४५,००० शहतूत के पौधों का वितरण किया जा चुका है जिसमें जुलाई माह के दौरान ८२,८५० शहतूत के पौधे वितरित किए गए हैं। उन्होंने जानकारी दी कि अब तक १०० स्वयं सहायता समूहों का गठन किया गया है जिसमें से ९१ स्वयं सहायता समूहों के बैंकों के माध्यम से जोड़ा जा चुका है।
उन्होंने संबंधित विभाग के अधिकारियों को जागरूकता शिविरों के आयोजन के निर्देश देते हुए कहा कि रेशम उद्योग से जोड़ने व इसका लाभ उठाने के लिए ग्रामीण स्तर पर शिविरों का आयोजन करना नितांत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि जिला में अब तक २६,१७० कि०ग्रा० रेशम ककून की पैदावार हुई जिसकी कीमत लगभग २२ लाख ७३ हजार ३३२ रुपए आंकी गई है। इसके अतिरिक्त १,००० परिवारों को लाभान्वित करने के मुकाबले अब तक ७०० परिवारों के लिए रेशम कीट पालन के लिए कक्षों का निर्माण किया जा चुका है।
डेयरी परियोजना का उल्लेख करते हुए उपायुक्त ने बताया कि डेयरी परियोजना में २२५ स्वयं सहायता समूहों का गठन किया गया है। प्रत्येक समूह में लगभग १० परिवार सम्मिलित हैं जिसके चलते अभी तक २२५० परिवार लाभान्वित हैं। इन उपलब्धियों को देखते हुए मिल्क फैड की विपणन घटक योजना के अन्तर्गत हमीरपुर जि+ला में प्राथमिक तौर पर पांच वल्क मिल्क कूलरों की स्थापना की गई है जिन्हें अगस्त माह में संचालित किया जाएगा। यह वल्क मिल्क कूलर हमीरपुर विकास खण्ड के जंगलरोपा, भोरंज विकास खण्ड के अमनेहड़ तथा नादौन विकास खण्ड के रैल जसाई व किट्पल में स्थापित किए जा चुके हैं तथा आने वाले दिनों में उसियाणा व ज्योली देवी में भी वल्क मिल्क कूलरों को स्थापित करने का प्रस्ताव है।
वल्क मिल्क कूलरों की स्थापना से जहां ग्रामीण जनता खेतीबाड़ी व बागवानी के साथ-साथ पशुपालन का कार्य कर अपने जीवन स्तर को और उन्नत कर सकेंगे वहीं लोगों को गुणवत्तायुक्त दूध की प्राप्ति हो सकेगी। इन कूलरों में परियोजना के तहत गठित स्वयं सहायता समूहों के २२५० परिवारों के अतिरिक्त ३० अन्य समितियों के माध्यम से लगभग ९०० परिवारों को आय के साधन सृजित होंगे। इन कूलरों के माध्यम से दूध को इकट्ठा कर उसे ठण्डा करके सुरक्षित रखा जाएगा जिसे मांग के अनुसार उपभोक्ताओं को उपलब्ध करवाया जाएगा।
जिला में श्वेत क्रांति के लिए यह एक महत्वपूर्ण पहल है जिसमें ग्रामीण लोगों की भागीदारी से ही इस परियोजना को सफल बनाया जा सकता है जिससे आने वाले समय में हमीरपुर जि+ला दुग्ध जि+ला के रूप में भी अपनी पहचान बनाने में सक्षम हो सकेगा।