चम्बा सौ साल पहले दिल्ली से भी आगे था और आज सौ सबसे पिछड़े जिलों में हैं, यह हमारे लिए बेहद दुःख की बात है, चम्बा के वरिष्ठ समाजसेवी, और चिपको जनांदोलन द्वारा वन संपदा और प्रकृति संरक्षण में विशेष योगदान देने वाले, कुलभूषण उपमन्यु, ने हिमवाणी से विशेष बातचीत में कहा।
भारत सरकार द्वारा ज़ारी देश के 115 पिछड़े जिलों की तालिका में चम्बा का नाम आने के बाद जिले में बहस गर्म है। इस सिलसिले में चम्बा के बुद्धिजीवी और हिमवाणी द्वारा #ChambaFirst (चम्बा फर्स्ट) अभियान चलाया गया है, जिसके तहत हम आपको चम्बा के लोगों के विचार और ज़िले के अलग-अलग पहलुओं से अवगत कराएँगे।
इस दाग का दुःख और संतोष दोनों है
चम्बा को पिछड़े जिलों की कतार में शुमार होने पर कुलभूषण उपमन्यु की मिली जुली प्रतिक्रिया रही। उन्होंने कहा, “हमारा चम्बा सौ साल पहले दिल्ली से भी आगे था और आज सौ सबसे पिछड़े जिलों में हैं। यह हमारे लिए बेहद दुःख की बात है। लेकिन आज लोगों कि इसकी बीमारी का एहसास है। अब इसकी बेहतरी के लिए नए सिरे से प्रयास किये जायेंगे। यह हमारे लिए संतोष देने लायक और ख़ुशी की बात है।”
पहाड़ी जीवन की चुनौती और अवसरों को समझना होगा
उपमन्यु ने कहा कि पहाड़ी जीवन की कुछ कठिनाइयाँ हैं, कुछ चुनौतियाँ है। लेकिन, कुछ अवसर भी हैं। हमें उन चुनौतियों से निपटना होगा और अवसरों को भुनाना होगा। जिससे हम अपनी खासियतों का लाभ उठा सकें।
हमारी समस्याओं को हमारी तरह से निपटाया जाए
उन्होंने कहा कि पालिसी पैरामीटर पर सभी परिस्थियों को एक तरीके से नहीं देखा जा सकता है। इस लिए जो हमारी समस्याएं हैं, सरकार को उनपर ध्यान देना होगा और उस समस्या और हमारी प्राथमिकता के आधार पर ही उसका निदान भी खोजना होगा। दुर्भाग्य है कि अभी तक ऐसा नहीं हुआ है।
चम्बा का इतिहास स्वर्णिम था; दिल्ली से पहले आई थी बिजली यहाँ
उपमन्यु ने चम्बा के स्वर्णिम भविष्य की याद दिलाते हुए बताया:
“चम्बा में 1910 में ही बिजली आ गयी थी, जबकि उसके दो-साल बाद दिल्ली में बल्ब जल थे । लेकिन, आज हमारी क्या हालत है ? राजनैतिक उपेक्षा के साथ-साथ आपसी अनेकता का भी हम शिकार हुए हैं। हमें यह सूरत बदलनी होगी।”
अच्छी स्ट्रेटजी के साथ बढ़ना होगा आगे
उन्होंने बताया कि हमें अपनी आगे की रणनीति में बदलाव् की जरूरत है। अच्छी रिसर्च के साथ आगे की प्लानिंग करनी होगी। अपनी बातों को ज्यादा तर्कपूर्ण तरीके से रखना होगा। हमें अपनी खासियतों का इस्तेमाल करना होगा। स्थानीय फल-फूल और वन संपदा से अपनी रोजी रोटी भी तलाशनी होगी। प्रकृति के साथ दोस्ताना सम्बन्ध रखने होंगे।
सरकारी पैसे का हो सही इस्तेमाल
उपमन्यु ने कहा कि सरकार द्वारा दिए गए ज्यादातर पैसे का दुरूपयोग हुआ। 75 फ़ीसदी से ज्यादा पैसों का इस्तेमाल उन मुद्दों में हुआ है जिसका कोई सीधा और तात्कालिक लाभ यहाँ के लोगों को नहीं मिला पाया। ऐसे डेड-इन्वेस्टमेंट से बचना होगा और हमारी चुनौतियों के अनुसार सरकार को योजनायें बनानी होंगी।
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पिछड़ने की वजह है दूर दृष्टि का अभाव और प्लानिंग में दोष
उन्होंने बताया कि आज़ादी के बाद 1948 से 1966 तक हमारी ग्रोथ रेट बाक़ी जिलों के समान थी, लेकिन सन 1966 में कांगड़ा के मर्जर के साथ ही राजनैतिक परिदृश्य बदलने लगा और हालत ये हुई कि हम राजनैतिक उपेक्षा के शिकार हुए। इसके साथ कांगड़ा और चम्बा की जियोग्राफी में कितनी असमानता है, जैसे कोई सड़क जो कांगड़ा में बनेगी, उसकी दस गुना से ज्यादा लागत और समय में वही सड़क चम्बा में बन पाएगी। लेकिन पालिसी पैरामीटर दोनों जगहों के लिए एक ही थे। इसके साथ ही चम्बा आपस में ही एक दूसरे से कटा है। जबकि यहाँ पर सभी तरह कि जलवायुवीय परिस्थियाँ हैं, जो पूरे भारत में कहीं नहीं हैं। यह अपने आप में एक कठिनाई है। लेकिन इस कठिनाई के बावजूद हमें उसकी खासियतों का लाभ उठाना चाहिए।
चम्बा फर्स्ट से जुड़ें
भारत सरकार द्वारा ज़ारी देश के 115 पिछड़े जिलों की तालिका में चम्बा का नाम आने के बाद जिले में बहस गर्म है। एक तरफ जहाँ इस तमगे से कुछ तमतमाए हैं और सरकार और नेताओं की नाकामी बताकर विरोध कर रहे हैं, वहीं कुछ इसे तो बीमारी की जानकारी मान कर बेहतर और कारगर इलाज खोजने की जरुरत पर जोर दे रहे हैं। चम्बयाल इस दाग को धोने के लिए ‘चम्बा रीडिस्कवर’ नाम से अभियान चलाकर चम्बा के स्वर्णिम भविष्य निर्माण में अपनी भूमिका खोज रहे हैं।हिमवाणी भी चम्बयालों के इस अभियान में कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है और ‘चम्बा फर्स्ट’ नाम से अभियान चला रहा है।
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