तुर्की में, हाल में हुए, अल्पाइन स्कीइंग प्रतियोगिता में हिमाचल की बेटी आँचल ठाकुर ने कांस्य पदक हासिल किया। परन्तु कितनों को मालूम है कि निर्णायक प्रतियोगिता से दो रात पहले आँचल के हाथ मे चोट लग गई थी।
चोटिल होने के बावजूद खेलीं आँचल ठाकुर
अपने अनुभव के बारे में आँचल ने हिमवाणी से कहा, “यह चोट मुझे 7 जनवरी, 2018 को अपनी स्की तैयार करते वक्त लगी, जिसकी वजह से मेरे हाथ से काफी खून बहा। डॉक्टरों के इलाज के बावजूद, मेरे हाथ में दर्द कम न हुआ। अगले दिन, 8 जनवरी, की दौड़ को मैं हाथ में दर्द होने की वजह से पूरा नहीं कर पाई।”
परन्तु आँचल ने हिम्मत नहीं हारी और 9 जनवरी की निर्णायक दौड़ में भाग लेकर हाथ में दर्द होने के बावजूद, भारत के लिए पदक जीत कर देश व प्रदेश का नाम रौशन किया।
ये दौड़ 21-वर्षीया मनाली के बुरुआ गाँव की रहने वाली आँचल के लिए आखिरी मौका थी। उन्होंने अपने गुरु मंत्र की तरफ ध्यान दिया और सोचा, “अगर आपके जीवन में कोई भी लक्ष्य है और उसे पाने में आपके सामने कठिनाइयाँ आती हैं तो रुकिये मत और उनका सामना कीजिए। आप ज़रूर ही अपने लक्ष्य को पा लेंगे ।”
माता-पिता को न हुआ जीत का विश्वास
पदक जीतने के बाद जब आँचल ने जब अपने माता-पिता को वीडियो कॉल किया और अपना पदक दिखाया तो उन्हें लगा कि यह सभी खिलाड़ियों को निशानी के तौर पर दिये गये हैं। “थोड़ी देर असमंजस में रहने के बाद मम्मी-पापा ने पूछा कि ‘तुम्हें कोई पोज़िशन मिली है या नहीं’ ? मैंने कहा, ‘बिलकुल पोज़िशन है’ । इसका उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था, लेकिन वो बहुत खुश थे । ये पल, अब तक, मेरे जीवन का सबसे यादगार पल था। इसे मैं कभी नहीं भूलूंगी,” आँचल ने बताया।
पूर्ण परिवार है प्रेरणा का स्रोत
उनकी प्रेरणा उनका पूरा परिवार रहा है जो कि इस खेल से जुड़ा हुआ है। इनके पिता रौशन ठाकुर, भारतीय शीतकालीन खेल महासंघ के महासचिव हैं, और स्कीइंग में राष्ट्रीय चैंपियन रह चुके हैं । इनके भाई हिमांशु ठाकुर भी स्कीइंग के खिलाड़ी हैं और 2014 के ओलम्पिक खेलों मे भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उनके चचेरे भाई भी इस खेल से जुड़े हुए हैं । उनके फुफेरे भाई, हीरालाल ठाकुर, जो कि एक समय मे उनके कोच रह चुके हैं, ने भी 2006 के ओलम्पिक खेलों में स्कीइंग में भारत का प्रतिनिधित्व किया है ।
6 साल की उम्र में कर दिया था स्की का अभ्यास शुरू
आँचल ने 6-7 साल की उम्र मे ही स्कीइंग करना शुरू कर दिया था । “लेकिन उस वक्त सिर्फ मैं मज़े के लिये खेला करती थी। मुझे पता नहीं था कि इस खेल को एक करियर के रूप में भी चुना जा सकता है। जब मैं 10 साल की हुई, तब मेरी रूचि इस खेल में बढ़ने लगी और मैं मनाली में स्कीइंग से जुड़ी प्रतियोगिताओं मे भाग लेने लगी,” आँचल ने कहा।
उनकी माता, राम दाई ठाकुर, सेब के बगीचे संभालती हैं ।
राज्य स्तरीय स्कीइंग प्रतियोगिता में अच्छा प्रदर्शन करने पर आँचल के पिता ने प्रशिक्षण के लिए उन्हें विदेश भेजा। उन्होंने स्कीइंग का सबसे ज्यादा अभ्यास यूरोपियन देशों — इटली, ऑस्ट्रिया और फ्रांस — में किया है । “मैं हर साल सर्दियों में तीन महीने के लिए विदेश मे ट्रेनिंग करती हूँ।” उन्होंने बताया।
आँचल, दो बार ओलम्पिक स्वर्ण पदक विजेता अमरीकी स्कीइंग खिलाड़ी टेड लिगिटी को अपना आदर्श मानती हैं । लिगिटी विश्व चैंपियनशिप्स मे पांच बार पदक जीत चुके हैं, जिसमें चार स्वर्ण पदक शामिल हैं ।
गुरुओं की डाँट करती है प्रोत्साहित
और उनके पसंदीदा कोच ? आँचल किसी एक व्यक्ति विशेष का नाम बताने से कतराती हैं। उनके अनुसार, उनकी सफलता में सभी का कुछ न कुछ योगदान रहा है। बचपन में उनके पापा उनके कोच रहें हैं। इसके बाद, उनके भाई हीरालाल ने उन्हें सिखाया है। अपने गुरुओं के साथ अपने अनुभव हिमवाणी से बांटते हुए आँचल ने हँसते हुए कहा:
“मुझे कोच करते हुए मेरे पापा ने मुझे कभी नही डांटा। अंतर्राष्ट्रीय गुरुओं से भी मुझे कभी डांट सुनने को नहीं मिली। लेकिन, भारतीय गुरुओं से स्कीइंग के लिए बहुत डांट सुनी है। परन्तु, ये डांट मुझे आगे और अच्छा करने के लिए प्रोत्साहित करती है ।”
एयरपोर्ट पर झेलने पड़ते हैं कई कष्ट
आँचल ठाकुर की विदेश यात्राएं भी कुछ कम कष्टदायी नहीं होती। विदेशों में प्रशिक्षण के लिए जाते समय, उन्हें एयरपोर्ट्स पर काफी मुश्किलों का सामना झेलना पड़ता है। “काफी लोगों को पता नहीं होता कि स्कीइंग क्या है, और स्कीइंग-किट कैसी होती है। मुझे बहुत से सवालों का सामना करना पड़ता है जैसे कि, ‘स्कीइंग किट क्या है?’ और मैं ‘बाहर क्यूँ जा रही हूँ ?’ स्की बहुत नाज़ुक होती है और जाँच के दौरान वो किट को बहुत बेरहमी से फेंकते हैं। एक बार तो मेरे दोस्त की स्की के आगे वाला भाग टूट गया था,” आँचल ने बताया।
स्पोर्ट्स किट के लिए कानूनन, विमान में, कोई चार्ज नहीं देना पड़ता है । परन्तु, इस सुविधा का भी कम ही लोगों को ज्ञान है। “शुरुआत में मैंने स्कीइंग किट का चार्ज दिया, लेकिन बाद में मैंने चार्ज देने से इनकार कर दिया। इस बात को ले कर मेरे एयरपोर्ट पर कई बार झगड़े हुए हैं। पूछताछ मे कई बार एक एक घंटे का समय बर्बाद हो जाता है,” आँचल ने अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए कहा ।
2022 के ओलिंपिक है अगला लक्ष्य
अल्पाइन स्कीइंग प्रतियोगिता में कांस्य पदक लाने से लोगों की उम्मीदें उनसे और भी ज़्यादा बढ़ गई हैं। वो कहती हैं कि आने वाले समय में और भी ज़्यादा मेहनत करेंगी। “हर खिलाड़ी का सपना होता है कि वो ओलिंपिक मे खेले और पदक जीते । 2022 में होने वाले शीतकालीन ओलम्पिक खेल अब मेरा अगला लक्ष्य है ,” आँचल ने बताया।
स्कीइंग रिसोर्ट बनाने की करती हैं सरकार से गुहार
यूँ तो आँचल को आर्थिक व मानसिक प्रोत्साहन की कमी नहीं रही है, और भारतीय शीतकालीन खेल महासंघ से भी काफी वित्तीय मदद मिलती रही है। अंतर्राष्ट्रीय स्कीइंग महासंघ ने भी ट्रेनिंग के लिए आँचल को काफी सहयोग दिया है। परन्तु फिर भी उनको सरकार से कुछ उम्मीदें ज़रूर हैं। वे चाहती हैं कि सरकार स्कीइंग रिसोर्ट बनाने की पहल करे जहाँ बच्चे स्कीइंग का प्रशिक्षण ले सकें । “विदेशों में स्कीइंग का प्रशिक्षण लेना बहुत महंगा पड़ता है। अगर हमें, प्रदेश में ही सब सुविधाएँ मिल जाएं तो यहाँ पर स्कीयर्स की संख्या बढ़ जायेगी,” उन्होंने कहा।
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नज़दीक में में स्कीइंग की सुविधाएँ न होने के कारण वो सोलांग-नाला में अभ्यास करने के लिये, दो घंटे पैदल जाती थीं, और इस वजह से वापसी में उन्हें रात तक हो जाती थी ।
अभिनय का भी रखती हैं शौक़
स्कीइंग के अलावा, आँचल ठाकुर को चित्रकला, नृत्य और अभिनय का भी शौक है । उन्होंने एक पंजाबी वीडियो में भी काम किया है। लेकिन, यह वीडियो अभी रिलीज़ नहीं हुआ है । इसके साथ-साथ वे पारंपरिक बुनाई का भी शौक रखती हैं।
उनकी शुरूआती पढ़ाई बुरुआ स्थित सरस्वती विद्या मंदिर से हुई है। इसके बाद उन्होंने सातवीं कक्षा में कुल्लू वैली स्कूल में दाखिला लिया । इसके बाद उन्होंने अपनी जमा दो की पढ़ाई, विज्ञान विषय में, भारत भारती स्कूल कुल्लू से पूरी की। इस वक्त आँचल डीएवी कॉलेज चंडीगढ़ में अंतिम वर्ष की छात्रा हैं ।
सभी चित्र सौजन्य: “Aanchal Thakur Alpine Skier“