इस बार के गणतंत्र दिवस की झाँकी में राजपथ पर हिमाचल प्रदेश के बौद्ध मठों के मन्त्रों की ध्वनि गूंजेगी। हिमाचल प्रदेश भाषा संस्कृति विभाग के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार प्रदेश के लौहौल स्पीति में स्थित ‘की-गोम्पा’ को इस बार गणतंत्र दिवस की झाँकी में शामिल किया गया है। गोम्पा झांकी का राजपथ पर होना इसलिए भी ख़ास माना जा रहा है क्योंकि इस बार गणतंत्र दिवस के मौके पर ASEAN (आसियान) के 10 राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्ष भी शामिल हो रहे हैं, जिसमे से 6 देशों में बहुसंख्यक बौद्ध धर्म को मानते हैं।
भाषा एवं संस्कृति विभाग के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि गोम्पा हिमाचल संस्कृति व बौद्ध धर्म को मानने वालों के दिल में विशेष स्थान रखते हैं। “इस वर्ष लाहौल स्पीति में स्थित ‘की-गोम्पा’ की झांकी राजपथ पर हिमाचल का प्रतिनिधित्व करेगी।” संस्कृति विभाग के अधिकारी ने ‘की-गोम्पा’ के इतिहास के बारे में बताया कि इस मठ की स्थापना 13वीं शताब्दी में हुई थी और इसकी झांकी का राजपथ पर प्रदर्शन हिमाचल पर्यटन को बढ़ावा देगा । इससे हिमाचल के अन्य गोम्पाओं की तरफ भी पयर्टकों का ध्यान आकर्षित होगा। जिससे इस संस्कृति के बारे में देश विदेश के लोगों को और भी जानकारियां प्राप्त होंगी।
बताते चलें की लगातार दूसरी बार हिमाचल की झाँकी को राजपथ पर स्थान मिला है। पिछली बार चंबा की भौगोलिक और सांस्कृतिक पहचान चंबा के रुमाल को झाँकी में शामिल किया गया था।
क्या होता है गोम्पा
गोम्पा तिब्बती शैली में बने एक प्रकार के बौद्ध-मठ के भवनों को कहते हैं। तिब्बत, भूटान, नेपाल और उत्तर भारत के लद्दाख, हिमाचल प्रदेश जैसे क्षेत्रो में यह कई स्थानों में हैं। यह भवन साधना, पूजा, धार्मिक शिक्षा और भिक्षुओ के निवास स्थान होते हैं। इनका निर्माण अक्सर एक ज्यामितीय धार्मिक मण्डल के आधार पर होता है जिसके केंद्र मे बुद्ध की मूर्ति या उन्हें दर्शाने वाली थांका चित्रकला होती है। गोम्पा अक्सर किसी शहर या बस्ती के पास किसी बुलंद पहाड़ या चट्टान पर बनाये जाते हैं।
‘की-गोम्पा’ काज़ा से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मठ, स्पीति में सबसे पुराने और बड़े मठों में गिना जाता है। हिमाचल के प्रसिद्ध गोम्पाओं में ‘ताबो’ गोम्पा सबसे पुराना है। ‘की और ताबो’ के इलावा गुरु घंटाल, थांग युंग, नाको, धनखड़ गोम्पा काफी प्रसिद्ध हैं।
आसियान के 6 राष्ट्रों में हैं बौद्ध धर्म के अनुयायी
उल्लेखनीय है कि इस वर्ष दिल्ली में मनाये जाने वाले गणतंत्र दिवस पर 10 ‘आसियान’ (ASEAN) देशों के नेता उपस्थित रहेंगे, जिसमें ब्रूनेई के सुल्तान हसन-अल बोलकिया, कम्बोडिया के प्रधानमंत्री हुन सेन, इंडोनेशिया के राष्ट्र्पति जोको विडोड़ो, लाओस के प्रधानमंत्री थोंग्लों सिसोलिथ, मलेशिया के प्रधानमंत्री नजीब रजाक, म्यांमार के राष्ट्र्पति हतिन क्याव, फिलीपींस के राष्ट्र्पति रोड्रिगो डूटर्ट, सिंगापुर के राष्ट्र्पति हलीमा याकूब, थाईलैंड के प्रधानमंत्री प्रयुथ चान–ओचा एवं वियतनाम के ग्यूयेन तन जुंग मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत करेंगे।
आपको बता दें कि इन 10 देशों में से 6 देश बौद्ध प्रमुख देश हैं, जिनमें कंबोडिया, लाओस, म्यांमार, सिंगापुर, थाईलैंड एवं वियतनाम देश शामिल हैं। ‘की-गोम्पा’ के सचिव, तेंजिन छुलिन ने हिमवाणी को प्रसन्नता व्यक्त करते हुए बताया, “हमें अत्यंत प्रसन्नता है कि इस बार की झांकी में की गोम्पा को चुना गया है। हमें ‘आसियान’ देशों में बौद्ध धर्म अनुयायियों को इस हज़ारों वर्षों पुरानी धरोहर को प्रदर्शित करने का मौका मिलेगा।”
उन्होंने यह भी बताया कि इससे पहले 2001 में भी ‘की-मठ’ को गणतंत्र दिवस की झांकी में प्रदर्शित किया गया था।
“गोम्पाओं की शैली व बौद्ध सन्यासियों के रहन सहन को जगत के सामने प्रदर्शित करने के इलावा गोम्पा के सन्यासियों को दिल्ली घुमने का अवसर प्राप्त होगा,” छुलीन ने हँसते हुए कहा।
की-मठ बौद्ध धर्म से सम्बंधित पुस्तकें तथा भगवान बौद्ध और अन्य देवियों की कलाकृतियाँ के लिए शुमार है। लामा यहाँ नृत्य, संगीत और वाद्य यंत्र बजाने का प्रयास करते हैं। लामाओ को यहाँ धार्मिक प्रशिक्षण दिया जाता है। यहाँ नैतिक आदर्शो से सम्बंधित पुस्तकें और मुखौटों का संग्रहण भी है।
मठों के भित्ति चित्रों के संरक्षण में मिलेगी मदद
दूसरी तरफ ताबो गोम्पा के लामा ज़ांग्पो जहाँ पर प्रसन्न प्रतीत हुए, वहीं थोड़े चिंतित भी लगे। उन्होंने हिमवाणी से कहा, “गोम्पाओं की झांकी ताबो की भित्ति चित्रों और कलाकृतियों को बिगड़ते पर्यावरण की वजह से होने वाले नुकसान की तरफ भी भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग का ध्यान खींचेगी।”
ज़ांग्पो ने बताया कि हिमालयन अजंता के नाम से जाना जाने वाला ताबो मठ 996 ईसवी में लोचावा रिंगचेन जंगपो ने बनाया था। ताबो मठ परिसर में कुल 9 देवालय है जिनमे से चुकलाखंड, सेरलाखंड, एवं गोनखंड प्रमुख हैं। आपको बता दें की वर्ष 1996 में इस गोम्पा ने अपनी स्थापना के 1,000 वर्ष पुरे कर लिए हैं।
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