हेमंत शर्मा
शिमला: हिमाचल प्रदेश में 36,615.92 हैक्टेयर मीटर (है.मी.) भूजल की उलब्धता है। यह खुलासा केंद्रीय भूजल बोर्ड ने किया है। इसमें कांगड़ा जिला की इंदौरा-नूरपुर वेली में 9,214.96 है.मी., मंडी जिला की बल्ह वैली में 3,483.00 है.मी., सिरमौर जिला की पांवटा वैली में 6,924.14 है.मी., सोलन की नालागढ़ वैली में 6,936.12 है.मी. तथा ऊना जिला की ऊना वैली में 10,057.77 है.मी. भूमि जल उपलब्ध है। जानकारी के अनुसार प्रदेश में भूजल की विकास प्रतिशतता 31.71 प्रतिशत है जिसमें कांगड़ा में 26.42, मंडी में 22.44, सिरमौर 17.62, सोलन 14.77 तथा ऊना में 51.15 प्रतिशत है।
बोर्ड ने यह भी बताया कि भविष्य में सिंचाई विकास के लिए 23,363.16 हैक्टेयर मीटर भूजल उपलब्ध है। यह खुलासा शिमला में केंद्रीय भूजल बोर्ड व केंद्रीय भूजल प्राधिकरण के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक सेमिनार में किया गया। बोर्ड के क्षेत्रीय निदेशक जेएस शर्मा ने इस मौके पर भूमि जल में वृद्वि के लिए वर्षा जल के संचयन में अपनाई जाने वाली तकनीकों से भी अवगत करवाया। उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में गली प्लग परिरेखा बांध (कंटूर बंड), गेवियन संरचना, परिस्त्रवण टैंक(परकोलेशन टैंक), चैक बांध, पुनर्भरण शाफ्ट, कूप डग वैल पुनर्भरण, भूमि जल बांध उपसतही डाईक के माध्यम से भूजि जल में वृद्वि की जा सकती है। इसी तरह शहरी क्षेत्रों में पुनर्भरण पिट (गङ्ढा) पुनर्भरण खाई (ट्रैंच), नलकूप, पुनर्भरण कूप के माध्यम से भूमि जल का संचयन किया जा सकता है।
जेएस शर्मा ने बताया कि जल की बढ़ी हुई मांग पूरा करने के लिए स्थानीय स्तर पर अथवा व्यापक स्तर पर जल का अति दोहन भूजल स्तर में गिरावट का कारण है। इसके अतिरिक्त प्राचीन साधनों जैसे तालाबों, बावड़ियों व टैंकों आदि का उपयोग न करना जिसमें भूजल निकासी पर अत्याधिक दबाव होना भी भूजल की गिरावट का कारण है। उन्होंने भूजल संग्रहण के लिए मूलमंत्र देते हुए कहा कि सीधी सतह पर बह रहे पानी को सीढ़ीनुमा भूमि आकार देकर भूमि में समाहित करें तथा ज्यादा से ज्यादा वर्षा जल को एकत्रित करें। उन्होंने बताया कि पानी की गुणवत्ता पर नजर रखने के लिए विभाग द्वारा विभिन्न नैशनल हाइड्रोग्राफ स्टेशन की सहायता से नमूने एकत्रित किए जाते है तथा इसकी जांच की जाती है।
Ground Water Resource Availability and Exploitation Comparison Charts