By: HimVani
साहित्य अकादेमी, दिल्ली ने शुक्रवार 7 मार्च, 2008 को सांय 6 बजे अपने विशिष्ट कथासंधि कार्यक्रम में सुपरिचित हिन्दी कथाकार एस. आर. हरनोट के एकल कथा-पाठ का अपने सभागार रवीन्द्र भवन, नई दिल्ली में आयोजन किया जिसमें हरनोट ने अपनी बहुचर्चित तीन कहानियों-मोबाइल, नदी गायब है और मां पढ़ती है का पाठ किया। तीन अलग-अलग विषयों पर प्रस्तुत की गई कहानियों को सभागार में उपस्थित लेखकों, पाठकों और मीडिया कर्मियों ने खूब सराहा। साहित्य अकादेमी के उप सचिव व साहित्यकार ब्रजेन्द्र त्रिपाठी ने कार्यक्रम शुरू होने से पूर्व हरनोट का विस्तार से परिचय करवाया और उनकी कहानियों के बारे में देश के कुछ प्रसिद्ध साहित्यकारों कमलेश्वर, ज्ञान रंजन, डॉ0 रमेश उपाध्याय और प्रो0 दूध नाथ सिंह द्वारा की गई चुनींदा टिप्पणियां भी प्रस्तुत कीं। श्री त्रिपाठी ने कहा कि ‘कथा संधि’ साहित्य अकेदमी का ऐसा विशिष्ट कार्यक्रम है जिसे देश के किसी एक चर्चित व सुविख्यात कथाकार पर केन्द्रित किया जाता है।
कथा-पाठ में प्रस्तुत कहानियों पर ब्रजेन्द्र त्रिपाठी ने बारी बारी अपनी टिप्पणियां दीं। मोबाइल कहानी को उन्होंने बाजारवाद के खतरे से लोगों को अगाह करवाती कहानी बताया। उन्होंने कहा कि ‘नदी गायब है’ कहानी स्थानीय संस्कृति पर खतरे को गहराई से उद्घाटित करती है। नदी के गायब होने का मतलब पूरी संस्क्ति का नष्ट होना है जिसमें तमाम लोक कथाएं, देवी देवता, रीति रिवाज, लोकाचार रचे बसे है,ं उन सभी पर एक प्रश्नचिन्ह है। अन्तिम कहानी आत्मविश्लेषण जैसी सुन्दर कहानी है जिसकी संवेदना भीतर तक झकझोर देती है। उन्होंने अपनी बात समाप्त करते हुए उपस्थित लेखकों और पाठकों को इन कहानियों पर अपनी बात कहने के लिए आकमन्त्रित किया।
लेखक, अनुवादक और सेतु वेब साहित्य पत्रिका के संपादक सुभाष नीरव ने कहा कि मोबाइल कहानी ने उनको बहुत प्रभावित किया है और इसलिए ही उन्होंने वेब पत्रिका में भी इस कहानी को प्रमुखता से छापा है। बाजारवाद को लेकर यह एक सशक्त कहानी है। नदी गायब है कहानी भी बहुत अच्छी है। आज पहाड़ों को जिस बेदर्दी से काटा जा रहा है, विकास के नाम पर जो देश व गांव में हो रहा ह,ै उसे यह कहानी शिद्दत से रेखांकित करती है। हरनोट की कहानियों की खूबी है कि हरनोट अपने अंचल को जितनी गहराई से व्यक्त और रेखांकित करते है,ं निःसंदेह वे इनकी कहानियों की शक्ति है जो इधर की कहानियों में बहुत कम देखने को मिलती है।
सुविख्यात लेखक व बयान पत्रिका के संपादक प्रो0 मोहनदास नैमिशराय ने साहित्य अकादमी को बधाई दी कि उसने एक सशक्त लेखक को बुलाया है। तीनों कहानियों में तीन अलग-अलग विषय हैं जिनका निर्वाह बखूबी हुआ है। उन्होंने कहा कि मैदानों और पहाड़ों में बाजारवाद के अलग अर्थ हैं। पहाड़ों में जो बाजारवाद घुस रहा है उसने गांव और पहाड़ों के साथ वहां के लोक जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है जिसे हरनोट ने इन कहानियों में गंभीरता से चित्रित किया है। हरनोट ने इसे झेला है, और हर वह आदमी जो पहाड़ों पर रह रहा है या बाहर से वहां जाता ह,ै उसे झेल रहा है। स्थानीय संस्कृति के लिए पैदा हो रहे खतरों को उदघाटित करती ये कहानियां हरनोट के कथा-श्रम को उद्घाटित करती है। इसलिए वे बधाई के पात्र हैं।
लेखक-आलोचक और अपेक्षा के संपादक डॉ0 तेज सिंह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हरनोट ने इन तीनों कहानियों में पहली बार यथार्थ में फैंटेसी का प्रयोग किया है जो उनकी कहानियों में बहुत कम मिलता है। इससे ये कहानियां बहुत सशक्त बनी है। इतनी छोटी कहानियों में इतने बड़े और गंभीर विषयों का निर्वाह कोई बिरला लेखक ही कर सकता है। उन्होंने हरनोट की एक अन्य चर्चित कहानी ‘दलित देवता सवर्ण देवता’ का भी जिक्र किया। मोबाइल कहानी में हरनोट ने एक मासूम भिखारी बच्ची के माध्यम से राजनीति और बाजारवाद का जो भयावह चित्र प्रस्तुत किया है वह भीतर तक छू जाता है। इसी तरह नदी गायब है कहानी तो एक बहुत बड़े कैनवस की कहानी है। हरनोट को जनता की शक्ति पर विश्वास है इसलिए वे तमाम रूढ़ियों को इस कहानी में तोड़ते हैं। जो बहुत बड़ी बात है। मां पढ़ती है कहानी को उन्होंने संवेदना के धरातल पर खरी उतरती सुन्दर कहानी कहा जिसमें मां के बहाने गांव के विविध रंग उकेरे गए हैं।
फिल्म निर्माता व प्रोड्यूसर प्रवीण अरोड़ा ने कहा कि वे हरनोट की कहानियों से बेहद प्रभावित हुए हैं। उन्होंने अपनी कहानियों में जो पहाड़ के चित्र प्रस्तुत किए हैं वे अद्भुत हैं। ‘नदी गायब है’ के बारे में उन्होंने कहा कि इस कहानी का यथार्थ उन्होंने अपनी फिल्म निर्माण करते हुए किन्नौर में स्वयं देखा हैं वहां जो विकास के नाम पर बाहर की कम्पनियां पहाड़ की संस्कृति को खराब कर रही है वह सचमुच पहाड़ों के लिए और वहां रह रहे लोगों के लिए खतरा है।
लेखक-आलोचक हीरालाल नागर ने तीनों कहानियों पर हरनोट को बधाई दी और कहा कि उन्होंने हरनोट को बहुत पढ़ा है। उन्होंने कहा कि वे वास्तव में साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित इसी समय आज ही एक दूसरे कार्यक्रम के लिए आए थे लेकिन उन्होंने यहीं आना उचित समझा। लोकजीवन को जिस तरह हरनोट ने अपनी कहानियों में लिया है वह बिरला देखने को मिलता है। उन्होंने पहाड़ों में जो जीवन है, विकास के नाम पर जो काम हो रहे हैं उससे पहाड़ों के साथ मनुष्य के लिए भी खतरे बने हैं। उन्होंने हरनोट की कहानी ‘बिल्लियां बतियाती है’ का उल्लेख करते हुए कहा कि मां को जिस तरह हरनोट ने प्रस्तुत किया है वह पहाड़ और गांव की समग्र सांस्कृतिक विरासत को हमारे सामने लाना है।
उक्त गाोष्ठी की यह एक लाक्षणिक और अप्रेरित घटना थी कि एक साहित्य प्रेमी ने हरनोट की कहानियों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि वे मूलतः एक कवि हैं और साहित्य अकादमी के कार्यक्रमों में आते रहते हैं। लेकिन जिस तरह की कविताएं पढ़ी जाती है वे कुछ खास प्रभाव नहीं छोड़+ती लेकिन आज की तीन कहानियां सुन कर कहा जा सकता है कि साहित्य अकादेमी इस तरह के सार्थक आयोजन भी करती है। उन्होंने कहा कि हरनोट की कहानियां बरसों-बरस याद रहने वाली कहानियां हैं।
एक अन्य उपस्थित फिल्म निर्माता व प्रोडियूसर देवेन्द्र चोपड़ा ने कहा कि उन्होंने दूरदर्शन के लिए कई बड़े लेखकों के साक्षात्कार को लेकर फिल्में बनाई है और इसलिए ही उन्हें साहित्यजगत का अनुभव भी है। हरनोट की खासियत यह है कि वे अपनी कहानियों में बिल्कुल सादी और मन को छू लेने वाली भाषा का इस्तेमाल करते हैं।
अन्य उपस्थित लेखकों में कथन के संपादक डॉ0 रमेश उपाध्याय, कथाकार बलराम अग्रवाल, प्रसिद्ध कथाकार व समकालीन भारतीय साहित्य के संपादक अरूण प्रकाश, लेखिका व कथन की संपादक संज्ञा उपाध्याय, उपन्यासकार भगवान दास मोरवाल, सुनील शर्मा, कैवैल्यधाम के निदेशक जे0 पी0 दौनेरिया सहित कई युवा लेखक भी शामिल थे।
ब्रजेन्द्र त्रिपाठी ने अन्त में सभी उपस्थित बन्धुओं और वक्ताओं सहित हरनोट का भी आभार व्यक्त किया।
namskar apko parta rahta hu asha he ap achhe honge
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