हिमाचल प्रदेश के वन विभाग द्वारा समुद्र तल से लगभग १२ हजार फीट की ऊंचाई पर पांगी घाटी में हर्बल नर्सरी विकसित कर जनजातीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आय के नये द्वार खोले हैं। लगभग पांच वर्ष की अल्प अवधि में नर्सरी उन लोगों के लिए, जो मिलो पहाड़ी सफर तय कर घने जंगलों से औषधीय जड़ी-बुटियों को इक्ट्ठा करते थे, के लिए समृद्धि का पर्याय बनी है। पांगी घाटी के अधिकतर वन अधिकतर ऊंचाई पर स्थित हैं तथा वर्ष में छः माह से अधिक समय तक बर्फ से ढ़के रहते हैं। पांगी घाटी में विकसित की जाने वाली औषधीय जड़ी-बुटियों के विपणन से वर्ष में २५ लाख रूपये का व्यापार सुनिश्चित बनाया जा रहा है।
हिमाचल प्रदेश में औषधीय जड़ी-बुटियों को उगाने की वर्षों पुरानी परम्परा रही है, क्योंकि यहां की पारिस्थितिकीय इस तरह की आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देती है। परमिट धारकों को वनों में जाकर औषधीय जड़ी-बूटियां एकत्र कर अपनी आय को बढ़ाने के पारम्परिक एवं दशकों पुराने अधिकार प्राप्त हैं, जबकि औषधीय जड़ी-बूटियों को वैज्ञानिक एवं व्यावसायिक आधार पर तैयार कर कई गुणा उत्पादन सुनिश्चित बनाना नवीन पद्धति है। इस प्रयोग से कम समय में उत्साहवर्धक एवं लाभदायक परिणाम सामने आए हैं।
हिमाचल प्रदेश के वन विभाग ने अपने प्रमुख कार्य के तौर पर राज्य में पेड-+पोधों एवं जीव-जंतुओं के संरक्षण को तो सुनिश्चित बनाया ही, साथ ही अपनी गतिविधियों में वैज्ञानिक ढंग से आषधीय जड़ी-बूटियों को तैयार कर जनजातीय क्षेत्रों के गरीब परिवारों की आजीविका को इससे जोड़ा है। पांगी घाटी हूंदान भटूरी में वर्ष २०००-२००१ में हर्बल नर्सरी तैयार की गई थी। ग्रेट हिमालय के इस क्षेत्र में प्राकृतिक सौंदर्य ने अपनी भरपूर छटा बिखेरी है। इस क्षेत्र में औषधीय जड़ी-बूटियों की सुगंध कुछ क्षण के लिए आपको विचलित कर सकती है। हूंदान बटूरी स्थित हर्बल नर्सरी पांगी घाटी के जि+ला मुख्यालय किलाड़ से मात्र १५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
वन विभाग के क्षेत्रीय कर्मचारियों द्वारा औषधीय जड़ी-बूटियों की असंख्य किस्मों के बीज+ों को एकत्रित किया गया तथा हूंदान नर्सरी में तैयार किया गया। इस कार्य के लिए उन्हें हज+ारों मील के पर्वतीय सफर को तय करना पड़ा। हर्बल नर्सरी में तैयार सैंपलिंग को वनों में रोपित कर विकसित किया गया। रोपे गए सैंपलिंग की जड़ों में गई गुणा वृद्धि होने से व्यापक क्षेत्र में इसका विस्तार सुनिश्चित हुआ।
औषधीय जड़ी-बूटियों के विभिन्न प्रकार, जिन्हें हर्बल नर्सरी में तैयार कर बाद में, वन में रोपण के पश्चात उगाया जा रहा है, स्थानीय शब्दों में धूप, कौड़ पतीस, कुठ, फारना, श्वाण, अतीश, चुकरी, भूतकेसी, वनकाकडू, चूरा, रत्नजोत, मीठी पतीस तथा सालमपेजा शामिल हैं।
किसी के लिए भी यह जानकार आश्चर्य होगा कि गत सात वर्षों के दौरान हूंदा हर्बल नर्सरी में २,६२,६७९ औषधीय जड़ी-बूटियों के सैंपलिंग तैयार किए गए। वर्ष २००३-०७ के बीच वन भूमि के ७१ हैक्टेयर क्षेत्र में १,७४,४१५ सैंपलिंग का रोपण किया गया। पांगी घाटी में प्रचूर मात्रा में वन सम्पदा मौजूद है तथा यहां के पहाड़ भोज पत्र के हरे वनों से ढके हुए हैं। कुछ क्षेत्रों में जहां इन सैंपलिंग को रोपित किया गया है,उनमें फीडपर धार, रजवाड़ मोझी, सयाणीधार, कुल्थू, चसक भटोड़ी, घीसाल, भासनू तथा शिवलोट शामिल है।
वन विभाग द्वारा पांगी घाटी के लोगों को औषधीय जड़ी-बूटियों की फसल तैयार होने पर इक्ट्ठे करने के लिए परमिट जारी किए गए हैं। वनों में रोपे गए औषधीय पौधों को तैयार होने में कम से कम तीन वर्ष का समय लगता है। पौधारोपण का कार्य नवम्बर माह में किया जाता है। प्रत्येक वर्ष ८०,००० से १,००,००० से अधिक औषधीय पौधों की किस्में मुख्य नर्सरी हूंदा भटूरी में तैयार की जाती है।
वन विभाग द्वारा पांगी घाटी के ६०० से अधिक परिवारों को अनुज्ञा पत्र जारी किए गए हैं। १४,००० रूपये से २५,००० रूपये के बीच एक क्विंटल जड़ी-बूटियां निकाली गई। प्रत्येक क्ंिवटल जड़ी-बूटियों के विक्रय पर पंचायतों को ५४० रूपये रायॅलटी के तौर पर प्राप्त होते हैं, जिससे पंचायत की आय में बढ़ौतरी होती है तथा इस राशि का उपयोग पंचायतों की विकासात्मक गतिविधियों में किया जाता है। एक अनुमान के मुताविक, पंजाब राज्य के अमृतसर बाज+ार तथा अन्य भागों में परमिट धारकों द्वारा एक हज+ार क्ंिवटल से अधिक की औषधीय जड़ी-बूटियों का विक्रय किया गया। औषधीय जड़ी-बूटियों का वार्षिक व्यापार २५ लाख रूपये का किया गया तथा निश्चित तौर पर इस राशि ने पांगी घाटी के जनजातीय लोगों की आय में वृद्धि सुनिश्चित बनाई है। कहने की आवश्यकता नहीं कि औषधीय जड़ी-बूटियों के उत्पादन ने पांगी घाटी के जनजातीय लोगों केी आर्थिकी में व्यापक वृद्धि सुनिश्चित बनाई है।