अद्वितीय परम्परा का प्रतीक है ‘मिंजर’

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हिमाचल प्रदेश में आयोजित होने वाले विभिन्न मेलों, त्यौहारों एवं उत्सवों में यहां की प्राचीन समृद्ध संस्कृति, आतिथ्य भाव एवं विविधता के एक साथ दर्शन होते हैं। प्रदेश में लगभग दो हजार देवी-देवता हैं, जिनके सम्मान में अनेक मेलों एवं त्यौहारों का आयोजन किया जाता है।

चम्बा जिले का सबसे लोकप्रिय त्यौहार है मिंजर, जिसमें जिले तथा प्रदेश के विभिन्न भागों से बड़ी संख्या में लोग शिरकत करते हैं। मिंजर मेले का आयोजन श्रावण माह के दूसरे रविवार को किया जाता है। मेले का शुभारम्भ मिंजर के वितरण से किया जाता है, जो रेशम एवं टसर से बनाया जाता है और इसे पुरुष एवं महिलाएं समान रूप से ÷दिल’ के पास लगाते हैं। यह मिंजर, धान एवं मक्का के कोंपलों का प्रतीक है, जो इस मौसम में तैयार होती हैं।

इस महोत्सव की उत्पत्ति को लेकर अनेक मत हैं। कुछ लोगों का कहना है कि यह मेला वरूण देवता की पूजा-अर्चना के लिए मनाया जाता है। दूसरी ओर, एक दंतकथा के अनुसार दसवीं शताब्दी में रावी नदी चम्बा नगर से बहती थी, चम्पावती मंदिर नदी के दाएं किनारे पर तथा हरीराय मंदिर इसके बाएं किनारे पर स्थित था। कहा जाता है कि एक पुजारी, जो चम्पावती मंदिर में रहता था, रावी नदी को तैर कर पार करता था और हरी राय मंदिर में प्रतिदिन प्रातः पूजा करता  था। स पर चम्बा नगर के राजा तथा वहां के स्थानीय निवासियों ने पुजारी से निवेदन किया कि वे ऐसी व्यवस्था करें जिससे प्रत्येक आदमी हरी राय मंदिर की यात्रा कर सके। इस पर पुजारी ने राजा व उसकी प्रजा को चम्पावती मंदिर में इकट्ठे होने को कहा । पुजारी ने बनारस के कुछ ब्राह्‌मणों के सहयोग से एक सात दिवसीय यज्ञ का आयोजन किया । ब्राह्‌मणों ने सात विभिन्न रंगों की एक डोरी बनाई, जिसका नाम मिंजर रखा । जब यज्ञ पूर्ण हुआ तो नदी ने अपना मार्ग परिवर्तित कर लिया और सभी लोगों को हरी राय मंदिर के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । एक अन्य कथानुसार, एक वृद्ध महिला चंबा के राजा को अपनी शुभकामना देने के लिए मिलना चाहती थी । वह वृद्ध महिला इतनी गरीब थी कि वह राजा के सम्मान में कुछ भी भंेंट नहीं कर सकती थी। इसलिए उस महिला ने मक्की के फूल, जिन्हें स्थानीय भाषा में मिंजर कहा जाता है, अपने साथ लाए । राजा इस वृद्ध महिला के स्नेह व प्यार से बहुत खुश हुआ। राजा ने आदेश दिया कि इस दिवस को मिंजर मेले के रूप में मनाया जाए।

ऐतिहासिक चौगान में मिंजर झंडे के साथ ही सप्ताह भर आयोजित होने वाले मेले का शुभारम्भ होता है। चम्बा शहर में यह मेला हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है और पूरा शहर इस दौरान ÷रंगीन’ हो जाता है। चौगान का ज्यादातर हिस्सा बाजार में बदल जाता है तथा सप्ताह भी लोग यहां दुकाने लगाकर अपना व्यापार करते हैं। इस दौरान, खेल एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है। सावन माह के तीसरे रविवार को मेले का समापन होता है। इस दौरान अखण्ड चण्डी महल से रघुनाथ जी की मूर्ति की शोभा यात्रा निकाली जाती है, जिसमें अन्य स्थानीय देवी-देवता भी शरीक होते हैं। इस शोभा यात्रा में हजारों की संख्या में लोग भाग लेते हैं। शोभा यात्रा में राजसी पताकांए, देवताओं के चिन्ह तथा सांस्कृतिक दल आकर्षण का केंद्र होते हैं। । रघुवीर वर्मन तथा अन्य स्थानीय देवी-देवताओं की मूर्तियों को पालकी में सजाकर महल से बाहर ले जाया जाता है तथा लोग हजारों की संख्या में इस शोभायात्रा में शामिल होते हैं, जिसके साथ चम्बा के राजा के पुराने शाही झण्डे भी होते है। जब शोभायात्रा रावी नदी के किनारे पहुंचती हैं, जहां मिंजर विसर्जित होती है, वहां पर मुख्य अतिथि सुसज्जित मंच पर विराजमान होते हैं । मंत्रोच्चारण के साथ, वे मिंजर, एक रूपया, एक नारियल, कुछ द्रूब तथा फूलों को नदी में विसर्जित करते हैं, जो इंद्र देवता को समर्पित होता है। इस समारोह के साथ ही मेले का समापन होता है तथा देवी-देवताओं की मूर्तियां व शाही झण्डे को वापिस अखण्ड-चण्डी महल वापिस लाया जाता है। स्थानीय कलाकारों द्वारा पारम्परिक कुंजी मल्हार गाया जाता है। लक्ष्मी नारायण मंदिर में प्रार्थना की जाती है। सप्ताह भर चलने वाले मिंजर मेले के दौरान स्थानीय लोग ÷मिंजर’ लगाते हैं । लोग अपने मित्रों एवं सम्बन्धियों को फल, मिठाइयां तथा मिजरें भेजते हैं, जो अच्छी फसल के लिए उनकी प्रार्थना का प्रतीक है ।

अंतरराष्ट्रीय मिंजर मेले का आयोजन इस वर्ष २९ जुलाई से ५ अगस्त तक किया जाएगा। सप्ताह भर आयोजित होने वाले मिंजर मेले का मुख्य आकर्षण प्रदेश एवं दूसरे राज्यों के सांस्कृतिक दलों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा खेल गतिविधियां होंगी। विभिन्न विभागों एवं संगठनों द्वारा प्रदर्शनियां भी लगाई जाएंगी हैं। इस मेले में प्रदेश एवं राज्य के बाहर से हजारों की संख्या में लोग भाग लेंगे हैं।

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