चम्बा फर्स्ट: चम्बा के वन्य जीव, जड़ी-बूटियां हैं ज़िले का इलाज: कॉमरेड रतन चंद्र

रतन चन्द्र ने कहा कि चम्बयाल वन सम्पदा को अपनी कमाई का ज़रिया बना सकते हैं। जैसे अखरोट का उत्पादन चम्बा में बिना किसी मेहनत के किया जा सकता है।

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कॉमरेड रतन चंद्र

कुदरत ने चम्बा को बेहद अमीर बनाया है, तो हम गरीब कैसे हो गए? चम्बा फर्स्ट अभियान के सिलसिले में हिमवाणी से विशेष बातचीत के दौरान समाजसेवा और जनान्दोलन के क्षेत्र में अपनी पहचान बना चुके कामरेड रतन चन्द्र ने अहम् सवाल किया?

उन्होंने कहा, “दुनिया में लोग इसी सम्पदा से तो अमीर बन रहे हैं। हमारे पास पर्याप्त उंचाई, पर्याप्त ठंडी और गर्म जगहें हैं। हमारे पास पर्याप्त वन सम्पदा, पर्याप्त भूमि, पर्याप्त जल — सब कुछ तो है। हमारे जंगलों में दुनिया भर को निरोग बनाने की जड़ी-बूटियां है, फल-फूल, सब कुछ है, तो हम गरीब कैसे हो गए?”

भारत सरकार द्वारा चम्बा को पिछड़े जिलों की सूची में शामिल किये जाने से चम्बयाल काफी आहत हैं, और इसके लिए विजडम की कमी को ही जिम्मेदार मान रहे हैं। कुछ, इस पिछड़ेपन में राजनैतिक नाकामी तलाश लेते हैं, तो कुछ अपने प्रयासों की बात करते हैं। हिमवाणी से खास बातचीत में उन्होंने ढेर सारे ऐसे प्रयासों के बारे में बताया जिससे चम्बा फिर से हिमाचल के साथ-साथ देश के अग्रणी जनपदों में शामिल हो सकता है। उनसे हुई बातचीत के अंश:

ग्लोबल वार्मिंग पर ध्यान दे वैज्ञानिक

जंगलो में सरकारी दखल और उनका दोहन रोकने के लिए लम्बी लड़ाई लड़ने वाले रतन चंद्र ने कहा कि सबसे पहले पहाड़ों की इस खूबसूरती और खासियत को बचाने के लिये ग्लोबल वार्मिंग से निपटना होगा, अन्यथा सब कुछ तबाह हो जायेगा।

जड़ी बूटियाँ कर सकती हैं चम्बा के इस दर्द का इलाज

रतन चंद्र ने बताया कि जिस जड़ी बूटियों के दम पर दुनिया में बड़ी-बड़ी बीमारियों का इलाज हो रहा है, वही जडी-बूटियाँ ही चम्बा के पिछड़ेपन की बीमारी का इलाज हैं। बस जरूरत है उनका समुचित तरीके से उत्पादन, उपयोग और व्यापार हो। उन्होंने रेखाल जड़ी के बारे में बताया कि इससे कैंसर की दवाई बनाई जाती है, लेकिन कुछ वर्षों में इसकी खूब लूट हुई और आज यह ख़त्म होने के कगार पर है। इसके उत्पादन और व्यवस्थित व्यापर से चम्बा और चम्बयाल की किस्मत बदली जा सकती है।

इसके अलावा यहाँ कुछ जड़ी बूटियाँ पाई जाती है जिसका प्रभावी उपयोग गर्भनिरोधक के रूप में होता आया है। इसके अलावा सैकड़ों बूटियाँ है जिनका वैज्ञानिक तरीके से उत्पादन और व्यवसाय हो तो हमें कहीं भी देखने की जरूरत नहीं है।

वन सम्पदा को बनाएं कमाई का ज़रिया

रतन चंद्र ने कहा कि चम्बयाल वन सम्पदा को अपनी कमाई का ज़रिया बना साकेत हैं। हमारे देश में अखरोट की गूदी, हजार रुपये किलो तक बिकती है। और अखरोट खड़ा भी रूपए 300 तक बिकता है। अखरोट का उत्पादन चम्बा में बिना किसी मेहनत के किया जा सकता है। इसके पेड़ों को सेब के पेड़ों की तरह देख-रेख भी नहीं करनी पड़ती है। इसके अलावा, वाइल्ड अप्रीकेट जैसे कई फल हैं जिससे बिना ज्यादा खर्च किये बहुत कमाई की जा सकती है।

वन्यजीवों की अहमियत समझें

रतन चंद्र ने बताया कि हमें अपने वन्य जीवों की अहमियत के बारे में जागरूकता फैलानी चाहिए। छोटे छोटे लाभ के लिए आज वन्य जीवों का शिकार हो रहा है। चम्बा की पहचान काला रीछ का शिकार यहाँ के लोग करते हैं, क्योंकि उसका पित्त जापान खरीदता है। लेपर्ड की हड्डियों का ग्राहक चीन है। कस्तूरी मृग, मोनाल सब इन जंगलों में कितनी बड़ी संख्या में पाए जाते थे। टूरिस्ट लोग यही देखने आते हैं। अगर ये न रहेंगे तो कौन देखने आएगा? हमें इनको अपना शिकार नहीं, साथी बनाना होगा।

प्राकृतिक पक्षी अभ्यारण्य बन सकता है बिना पैसे के

रतन चंद्र का कहना है कि चम्बा के वन्यजीव विविधता का लाभ उठाकर यहाँ नेचुरल बर्ड सैंक्चुअरी बनाई जा सकती है। इसके लिए यहाँ पर सरकार को ज्यादा पैसे खर्चने की भी जरुरत नहीं है। थोड़ा ध्यान दें, बस। इससे वन्यजीवों को संरक्षण भी मिल जाएगा और स्थानीय लोगों के लिए बेहतर रोजगार के अवसर भी सृजित हो जायेंगे।

चम्बा की सैकड़ों पहचान आज क्यों खोज रही है अपनी पहचान

रतन चंद्र ने बताया कि चम्बा की संस्कृति से जुड़ी चीजों की किसी समय में बड़ी महत्ता थी। लेकिन, आज ये अपनी पहचान खोज रही है। जब देश के अन्य कोने में बन रही खाने, पीने, पहनने की चीजें दुनिया भर में बिक रही रही हैं, अपनी पहचान बना रही हैं, तो हमारी पहचान क्यों खोती जा रही है ? चम्बा का चुख, चम्बा की चप्पल, घी, शहद, रूमाल, जिसकी एक ज़माने में बड़ी मांग थी, आज क्यों लापता हो गयी ? हमें इस बाज़ार को तलाशना होगा और फिर से पहचान बनानी होगी।

चम्बा के मंदिर बन सकते है टूरिज्म हब

रतन चंद्र ने बताया कि चम्बा के मंदिरों को संरक्षित धरोहरों में शामिल किया जाये। एक से एक मंदिर हैं। हर कदम पर हमारी समृद्ध परम्परा की कहानियां झलकती हैं। अगर हम इसे देश दुनिया तक पहुंचा भर ले जाए, चम्बा दुनियां के लोगो को खुद की अपनी तरफ खींच लाएगा और इसके साथ चम्बा में अवसरों की भरमार होगी। जो देश और प्रदेश की उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करेगा।

हमारे खानसामों की मांग इंग्लैंड में भी थी अब क्या हुआ

चम्बा के समृद्ध फ़ूड कल्चर (खाद्य संस्कृति) के बारे में बताते हुए रतन चन्द्र ने कहा कि हमारे खाद्य कल्चर का कोई सानी नहीं है, 12 तरह से एक-एक मांसाहारी खाद्य पदार्थों को पकाया जाता था, आज वह कहाँ हैं ? उसके बारे में हम लोगों को क्यों नहीं बताते हैं ? उन्होंने अंग्रेजों के ज़माने का जिक्र करते हुए बताया:

“जब आज़ादी के बाद अंग्रेज अधिकारी इंग्लैंड जाने लगे, तब यहाँ के खानसामों को ले जाना चाहते थे। लेकिन कोई भी वहां जाने पर राज़ी नहीं हुआ। यह उनके हाथ के बनाए खाने और हमारे खाद्य संस्कृति की समृद्ध परम्परा की वजह से था।”

अगर यह बातें दुनिया को बताई जाएँ तो भला ऐसा कौन है जो यहाँ एक बार न आना चाहे?

नेताओं के पिछलग्गू न बने पंचायत प्रधान

पंचायती राज के बारे में बताते हुए रतन चन्द्र ने कहा कि पंचायती राज का उद्देश्य तब तक पूरा नहीं होगा, जब तब पंचायती राज का प्रतिनिधि खुद की ताकत को नहीं समझेगा, और स्वयं को नेताओं का पिछलग्गू बनने से रोक लेगा। उन्होंने कहा कि पंचायत राज की सफलता के लिए प्रतिनिधियों को जागरूक करने के साथ साथ, प्रशिक्षण देने की भी जरूरत हैं। पंचायती राज के महत्व के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि ये स्वयं ही ‘डिसीजन मेकर’ हैं और इन्हीं के कंधे पर लोकतंत्र को आगे ले जाने की आरंभिक जिम्मेदारी है।

चम्बा के लिए भी निकलेगी राह

संघर्ष से राह तलाशने वाले रतन चंद्र बेहद आशावादी हैं। उनका मानना है कि हर अति, का हर अत्याचार का, अंत होता है। हर अति के खिलाफ एक दौर चलता है। इतिहास इसका साक्षी रहा है। अब चम्बा के साथ हुई अति का अंतिम समय आने वाला है। उम्मीद है, नए दौर के लोग इस अति के खिलाफ आवाज़ उठाएंगे और और स्थिति बदलेगी।

भारत सरकार द्वारा चम्बा को पिछड़े जिलों की सूची में शामिल किये के जाने के बाद, से चम्बयालों द्वारा चम्बा रीडिस्कवर जैसे अभियान यहाँ की सिविल सोसाइटी द्वारा चलाये जा रहे हैं। उनके इस अभियान में हिमवाणी भी चम्बा फर्स्ट (#ChambaFirst) नामक अभियान चलाकर कन्धे से कन्धा मिलाकर चल रहा है।

चम्बा फर्स्ट अभियान से जुड़ें

यह लेख #ChambaFirst (चम्बा फर्स्ट) अभियान के तहत लिखा गया है। इस अभियान के तहत हम आप तक चम्बा के अलग अलग पहुलओं को लाते रहेंगे। हमारा प्रयास रहेगा की हम जनता के विचार एकत्रित कर, चम्बा को पिछड़ेपन के खिताब से मुक्त कराने हेतु, रीडिसकवर्ड के साथ मिल कर एक श्वेत पत्र लाएं जिसमें चम्बा के विकास के लिए विचार प्रस्तुत होंगे।

आप अपने विचार, लेख, हिमवाणी को editor[at]himvani[dot]com पे भेज सकते हैं। इसके इलावा Facebook और Twitter द्वारा भी अपने विचार रख सकते हैं। जब भी आप अपने विचार प्रकट करें, #ChambaFirst टैग का अवश्य इस्तेमाल करें, जिससे सारी कड़ियाँ जुड़ सकें।

चम्बा फर्स्ट से जुड़े सभी लेखा यहाँ पढ़ें

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वेद प्रकाश सिंह वर्तमान में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे हैं. पेशे से पत्रकार शौक़ से घुमक्कड़ी वेद पिछले 4 सालों से पत्रकारिता से जुड़े हैं और विभिन्न ख्यातिलब्ध पत्रकारिता संस्थानों के लिए लेखन कर रहे हैं।

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