चम्बा जिले में पड़ने वाले चंद्रेड गाँव (डाकघर साहो) के लोगों ने पूरे जिले भर में सहयोग का एक अनूठा उद्हारण पेश किया है। साल घाटी के अंतर्गत पड़ने वाली मुख्य आबादी मुस्लिम बहुल गुज्जरों की है। घुमन्तु जीवन शैली होने के कारण, काफी समय से यह जनजाति, शिक्षा क्षेत्र में भी काफी पिछड़ी है। वोट बैंक न होने के कारण, किसी सरकार ने भी इन पर कोई ध्यान दिया। इनकी काफी आबादी लम्बे समय तक अनपढ़ रही है। परन्तु, पिछले तीन वर्षों में, घाटी के लोगों के प्रयासों और जन सहयोग से एक स्कूल क्षेत्र के बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करा रहा है।
शिक्षा क्षेत्र में पिछड़ने के कारण घाटी के लोगों ने 2015 में ‘मौलना अबूल कलाम आजाद एजुकेशनल एवं वेलफेयर सोसायटी’ बनाई और 15 बच्चों को इक्कठा करके — जो किसी भी अन्य मदरसे या पाठशाला में नही जाते थे — यह पाठशाला शुरू की। यहाँ पर पिछड़े समुदाय की जीवन शैली और माहौल के हिसाब से पाठ्यक्रम तैयार किया गया और शिक्षा विभाग चम्बा द्वारा मान्यता प्राप्त कर इस स्कूल में 1 से लेकर 8 तक की कक्षाएँ बैठाई गयी।
घुमन्तू जीवन शैली के लोगों के बच्चों के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा मोबाइल स्कूल शुरू करने की बात कई बार की गई है। परन्तु, इसके लिए ज़रूरी अध्यापकों की नियुक्ति और पाठशाला के संचालन की प्रक्रिया को शिक्षा विभाग पूरा नही कर सका।
समाज में बढ़ते पिछड़ेपन पर विभागों की फेल होती योजनाओं को ध्यान में रख कर सोसायटी ने स्वयं ही कुछ करने का फैसला लिया।
60 बच्चे रहते हैं विद्यालय में
इस विद्यालय में हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड का पाठ्यक्रम पढ़ाया जा रहा है; और आज यहाँ 200 से अधिक बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। खास बात तो यह है कि यहाँ पर दूर दराज के बच्चों के लिए रात को रहने की — 60 बच्चों की — व्यवस्था भी सोसायटी द्वारा निशुल्क ही की गयी है।
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सोसायटी व पाठशाला का संचालन
सोसाइटी और इस विद्यालय के सञ्चालन का साल भर का बजट रूपए 15 लाख के करीब रहता है, जो कि आपसी सहयोग से ही इकठ्ठा किया जाता है। पाठशाला में 12 अध्यापक स्वयं प्रेरणा से और बहुत ही कमवेतन पर काम कर रहे हैं।
सरकार से भी सहयोग की आशा
भविष्य में कन्याओं के लिये छात्रावास बनाने की योजना भी तैयार की जा रही है। आज भी दूर-दराज के क्षेत्रों में कई लड़कियाँ अशिक्षित रह रही हैं, जिनका भविष्य सरकार की उपेक्षाओं की वजह से अंधकारमयी नजर आता है। सोसायटी अध्यक्ष मोहमम्द मूसा ने हिमवाणी को बताया कि वे सरकार से भी पाठशाला के विकास के लिए सहयोग की आशा रखते हैं। क्योंकि, प्रबंधन में समय समय पर बहुत समस्याएं आती रहती है। चाहे वो लड़कियों के लिए हॉस्टल निर्माण हो, शौचालयों का निर्माण हो, या फिर पाठशाला भवन के और कमरे खड़े करने की बात हो।
बिना भेद-भाव के मिला सहयोग
मूसा ने बताया की पाठशाला के विकास में सभी लोगों का साथ मिलता रहा है और धार्मिक भावनाओं को पीछे छोड़ कर क्षेत्र के लोगों ने आपसी भाईचारे का संदेश दिया है। इस पाठशाला को खोलने का स्वप्न देखने वाले हाजी फतेह मोहम्मद बताते हैं कि शिक्षा ही जीवन का आधार है और यह पाठशाला सभी जनजातियों और धर्मों के बच्चों के लिए हमेशा खुली है।
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