हेमंत शर्मा
शिमलाः प्रदेश में प्रत्येक वर्ग के कल्याण को सुनिश्चित बनाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) सदैव प्रयासरत रहता है। नाबार्ड द्वारा चलाए गए कृषक क्लब कार्यक्रम (एफसीपी) के सराहनीय परिणाम सामने आए हैं। नाबार्ड इन क्लबों द्वारा कृषि क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने पर सम्मानित भी करता है ताकि उन्हें प्रोत्साहित किया जा सके। इसी कड़ी में नाबार्ड ने अपने साथ किसानों को लेकर चलने का भी सफल प्रयास किया है। नाबार्ड द्वारा प्रथम पुरस्कार पाने वाले सिरमौर जिले के डिंगर किन्नर गांव के ”प्रभात किसान क्लब व द्वितीय पुरस्कार पाने वाले मंडी जिले के रोपा गांव के ”चामुंडा किसान क्लब” ने हिमवाणी के साथ अपनी सफलता को लेकर विचार साझा किए।
प्रभात किसान क्लब की समन्वयक आशा ठाकुर का मानना है कि उनके क्लब के सदस्यों के अथक प्रयासों की बदौलत ही उन्हें ये सफलता आज मिल पाई है। उन्होंने बताया कि उनका क्लब अगस्त 2006 में शुरू हुआ था जिसमें 150 स्वयं सहायता समूह जुड़े हैं जो तरह-तरह की जानकारी गांवों में किसानों तक पहुंचाने में सहयोग देते हैं। उन्होंने बताया कि क्लब ने अब तक नाबार्ड के सहयोग से जिले में 8 केंचुआ खाद शैडों का निर्माण कर लिया है। इसके अलावा जिले में अधिकतर किसानों का किसान क्रेडिट कार्ड बनवा लिए गए हैं जिससे वे सभी प्रकार के लाभ उठा रहे हैं।
चामुंडा किसान क्लब का मानना है कि उनके क्लब के सदस्यों द्वारा की गई कड़ी मेहनत के फलस्वरूप ही उनके क्लबों को यह गौरव प्राप्त हुआ है। उन्होंने बताया कि उनके किसान क्लब वर्ष 2005 में शुरू हुआ था, जिसमें दस स्वयंसहायता समूह शामिल है। लक्ष्मी ठाकुर का कहना है कि उनका क्लब गांव-गांव जाकर कृषि विभाग द्वारा चलाए गए किसान हितैषी कार्यक्रमों की जानकारी किसानों को उपलब्ध करवाता है। इसके अलावा विभाग द्वारा नए व उत्तम किस्म के बीजों के उपयोग व कृषि की नवीनतम तकनीक से अवगत करवाता है, जिसके तहत 31 दिसंबर 2008 तक नाबार्ड अपने साथ 532 किसान क्लबों को जोड़ चुका है।
जानकारी के अनुसार कांगड़ा जिला में 102, बिलासपुर में 34, चंबा में 38, हमीरपुर में 32, किन्नौरू 17, कुल्लू में 50, लाहौल-स्पीति में 6, मंडी में 83, शिमला में 51, सिरमौर में 38, सोलन में 42, ऊना 39 किसान क्लब गठित हुए हैं। गौरतलब है कि नाबार्ड ने विकास वालंटियर वाहिनी कार्यक्रम की अवधारणा को नवंबर 1982 में आरंभ किया, जिसका प्रयोजन ”ऋण के माध्यम से विकास” के सिद्वांत को इस प्रयोजन हेतु गठित किसान समूहों की सहायता से प्रचारित करना था। वर्ष 2005 में इस कार्यक्रम का नाम बदलकर कृषक क्लब कार्यक्रम कर दिया गया। सितंबर 2008 के अंत तक नाबार्ड ने संस्थागत और अन्य एजेंसियों के माध्यम से 29 राज्यों में 33,000 क्लबों के निर्माण्ा में सहायता प्रदान की। नाबार्ड का लक्ष्य है कि अगले वर्ष तक 50,000 और 11वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक 1,00,000 क्लबों का गठन किया जाए।