हेमंत शर्मा
शिमलाः हिमाचल प्रदेश शिक्षा संस्थानों में रैगिंग निरोधक अध्यादेश-2009 पर बुधवार को राज्यपाल प्रभा राव ने हस्ताक्षर कर दिए। इस अध्यादेश की अवधि छह माह तक वैध रहती है तथा छह माह के अंदर-अंदर इस अध्यादेश को विधानसभा में पारित करके लागू करना होता है।
गौरतलब है कि गत दिनों मंत्रिमंडल की बैठक में इस अध्यादेश को स्वीकृति प्रदान की गई थी। अध्यादेश के अनुसार रैगिंग एक संगीन अपराध, गैर जमानती तथा न्यायालय की अनुमति पर ‘कंपाउंडेबल ऑफैंस’ होगा। अध्यादेश के अंतर्गत कोई भी विद्यार्थी अपराधी पाए जाने पर शिक्षा संस्थान से निकाला जा सकता है तथा निकाले जाने की तिथि से 3 वर्षों तक किसी भी शिक्षा संस्थान में प्रवेश के लिए पात्र नहीं होगा। इस तरह के अपराधियों को 3 वर्षों का कारावास अथवा 50 हजार रुपये जुर्माना या दोनों ही सजाएं हो सकती हैं।
ऐसे मामले में कोई भी विद्यार्थी, माता-पिता व अभिभावक व शिक्षा संस्थान का प्राध्यापक तथा कार्यालय प्रभारी संबंधित शिक्षा संस्थान के प्रमुख को लिखित तौर पर रैगिंग की शिकायत करते हैं, तो संस्थान के प्रमुख को शिकायत मिलने के 24 घण्टे के भीतर मामले की जांच करना आवश्यक होगा। उसे अपने उच्च अधिकारियों को इस विषय में जानकारी देने के अतिरिक्त, प्राथमिक तौर पर शिकायत सही पाए जाने पर दोषी विद्यार्थी को निलंबित किया जाएगा। यदि प्राप्त शिकायत का पता नहीं चल पाए तो इस बारे में शिकायतकर्ता को लिखित तौर पर वास्तिविक स्थिति के बारे में जानकारी दी जाएगी। शिक्षा संस्थान में रैगिंग को रोकने के लिए अध्यादेश के प्रावधानों को लागू करने में चूक होने की स्थिति में संस्थानगत अनुशासन प्राधिकरण द्वारा किसी भी प्रकार चूक अथवा स्थानीय पुलिस में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज क़रवाने में जानबूझ कर किया गया बिलम्ब आपराधिक कार्य माना जाएगा, जिसके लिए एक वर्ष का कारावास अथवा 10,000 रुपये तक जुर्माना अथवा दोनों सजाएं हो सकती हैं। जबकि शिक्षा संस्थान के प्रमुख व प्रभारी को भी सज़ा व जुर्माना हो सकता है। सज़ा दो वर्षों तक तथा जुर्माना 25000 रुपये तक बढ़ाया जा सकता है और दोनों ही सज़ाएं हो सकती हैं।
यह अध्यादेश टांडा मेडिकल कालेज में अमन काचरू की रैगिंग के चलते हुई मौत के दृष्टिगत लिया गया है। अब किसी भी विद्यार्थी को रैगिंग लेने से पहले काफी सोचना होगा। रैगिंग के शिकार होने वाले छात्रों को इससे राहत की सांस मिलेगी।