हिमवाणी
मंडी: पंचायती राज संस्थाओं और शहरी निकायों के चुनावों से ऐन पहले प्रदेश सरकार ने मनरेगा जैसी केन्द्रीय योजना में प्रदेश सरकार की बैक वर्ड एरिया प्लान और मुख्यमंत्री ग्राम पथ योजना को शामिल करने की कवायद शुरु कर दी है। इस बारे में प्रदेश के प्रधान सचिव योजना और ग्रामीण विकास विभाग के सचिव की ओर से प्रदेश के सभी ज़िलों के उपायुक्तों को निर्देश जारी कर दिए हैं। इस बारे में जारी निर्देशों में यह दलील दी गई है कि मनरेगा में मजदूरी और मैटीरियल का अनुपात 60:40 है जबकि प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार इस हिसाब को बरकरार रखने में मुश्किल आ रही है।
उपायुक्तों को जारी पत्र में कहा गया है कि मनरेगा की निर्देशिका में यह प्रावधान है कि समुदाय के लिए दीर्घकालीन संपत्ति बनाने के लिए केन्द्र प्रायोजित और राज्य की योजनाओं को मनरेगा में शामिल किया जा सकता है। इन्हीं प्रावधानों के अनुसार प्रदेश सरकार की ओर से विकेंद्रीकृत योजनाओं, पिछड़ा क्षेत्र उप योजना और मुख्यमंत्री ग्राम पथ योजना को मनरेगा में मिलाया जा रहा है, ताकि पूंजी आधारित कार्यों में भी केन्द्र की ओर से मजदूरी और मैटीरियल के निर्धारित अनुपात को बरकरार रखा जाए। प्रदेश सरकार की ओर से जारी इस पत्र पर प्रदेश कांग्रेस ने कड़ा संज्ञान लिया है। कांग्रेस का आरोप है कि प्रदेश भाजपा सरकार की मनरेगा जैसी केन्द्र की महत्वकांक्षी योजना में प्रदेश सरकार की नाममात्र योजनाओं को शामिल कर शामिल कर सियासी लाभ लेने की फिराक में है।
कांग्रेस का कहना है कि मनरेगा जैसे कार्यक्रम की परिकल्पना के पीछे ग्रामीण क्षेत्र से शहरों की ओर होने वाले मजदूरों के पलायन को रोकना और गांव के स्तर पर लोगों की आर्थिकी मजबूत करने के लिए हर परिवार के इच्छुक व्यस्क व्यक्ति के लिए साल में सौ दिन का रोज़गार सुनिश्चत करना है। लेकिन प्रदेश सरकार ने इसे इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट प्रोग्राम बना दिया है। उधर, मनरेगा को मजबूत करने को लेकर काम कर रहे मजदूर कामगार संगठन का आरोप है कि प्रदेश में आलम यह है कि मात्र 10 प्रतिशत जॉब कार्डधारकों को ही रोज़गार उपलब्ध करवाया जा रहा है। लोगों को मांगने पर भी काम नहीं मिल रहा है और प्रदेश सरकार प्रदेश की योजनाओं को मनरेगा में शामिल कर मैटीरियल का खर्च बढ़ाने की कवायद में जुटी हुई है जो कि मनरेगा की मूल भावना के खिलाफ है।
पिछड़ा क्षेत्र योजना और मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना को मनरेगा में शामिल किया जा रहा है ताकि समुदायों के लिए दीर्घकालिक एसेट्स बनाए जा सकें और केन्द्र के मजदूरी-मैटीरियल अनुपात को बरकरार रख सकें।
प्रदेश के उपयायुक्तों को ग्रामीण विभाग के सचिव पीसी धीमान के निर्देश
मनरेगा जैसी केन्द्र की योजना की कामयाबी से प्रदेश सरकार बेहद परेशान है। प्रदेश सरकार का खजाना खाली है और मनरेगा के बलबूते प्रदेश में विकास का श्रेय खुद को लेने की हर संभव साजिश प्रदेश सरकार की ओर से की जा रही है। इस बारे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से शिकायत की जाएगी।
वीरभद्र सिंह, कांग्रेस सांसद मंडी व केन्द्रीय इस्पात मंत्री
मनरेगा जैसे कार्यक्रम में प्रदेश सरकार की योजनाओं को मिलाने से प्रदेश सरकार की नियत साफ है। प्रदेश सरकार केन्द्र से आने वाले धन को भी प्रदेश सरकार का बताकर राजनीतिक लाभ लेने की फिराक में है।
ठाकुर कौल सिंह, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, हिमाचल प्रदेश
मनरेगा की मूल धारणा गांवों से होने वाले मजदूरों के पलायन को रोकना और ज़रुरतमंद और इच्छुक लोगों को घर के पास ही साल में न्यूनतम सौ दिन का रोज़गार उपलब्ध करवाना है लेकिन प्रदेश सरकार इसे इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट का कार्यक्रम बनाने पर तुली है।
संत राम, अध्यक्ष-मजदूर कामगार संगठन, हिमाचल प्रदेश।