सियासत पर सियासत भारी

0

हेमंत शर्मा

शिमलाः भाजपा हो या कांग्रेस, हिमाचल प्रदेश मे दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों पर केंद्र का सिक्का हावी रहता है। प्रादेशिक पार्टियों की भावी रणनीति तय करने में केंद्रीय पार्टियां अहम योगदान देती है। मेरा उद्देश्य दोनों राजनीतिक दलों के राज्य व राष्ट्रस्तर पर आंतरिक मामलों को उजागर करना नहीं अपितु राजनीतिक दलों के गिरते राजनीतिक स्तर पर आश्चर्य प्रकट करना है। वर्तमान में लोकसभा चुनाव होने को है। इन चुनावों में विशेष रूप से कांग्रेस टिकट आबंटन मामले में भाजपा की अपेक्षा अधिक अस्थिर नजर आई। इसके चलते अखिल भारतीय कांग्रेस समिति व हिमाचल प्रदेश कांग्रेस समिति में मनमुटाव नजर आया। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) हिमाचल प्रदेश में सीटिंग सांसदों को ही चुनावी मैदान में उतारने की पक्षधर थी, जो कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी को भी मंजूर था। लेकिन कांगड़ा व शिमला सीट पर एआईसीसी का पत्ता तो चल गया परंतु मंडी सीट से अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी को सकारात्मक उत्तर नहीं मिला। मंडी संसदीय क्षेत्र से वर्तमान सांसद प्रतिभा सिंह ने चुनावी रण में उतरने से इंकार कर दिया। एआईसीसी को मंडी संसदीय क्षेत्र से वीरभद्र सिंह को उनकी इच्छा के बगैर ही उतारना पड़ा।

एआईसीसी को हमीरपुर संसदीय सीट से प्रत्याशी को उतारने में काफी जद्दोज़हद करनी पड़ी। काफी अंतराल के बाद एआईसीसी का निर्णय आया भी तो वह पूर्व क्रिकेटर मदनलाल के रूप में, जिस पर अधिकतर कांग्रेसी बिफर उठे। उपरोक्त पूरे धारावाहिक से तो यही नजर आता है कि एआईसीसी अपनी तानाशाही के दम पर चुनाव लड़ना चाहती है। जो कि कांग्रेस पार्टी के भविष्य के लिए सही नहीं है।

प्रदेश कांग्रेस के दिग्गज नेता भी एआईसीसी के फैसले पर टिप्पणी करने से साफ मुकर रहे हैं। उनका मानना है कि हाईकमान का फैसला अंतिम एवं सर्वमान्य है।

खैर, टिकट तो फाइनल हो गया है। लेकिन एआईसीसी को चाहिए था कि वह नरेंद्र ठाकुर पर दाव खेलती तो मुकाबला कड़ा हो सकता था। मेरा अभिप्राय यह कतई नहीं कि मदनलाल एक कमजोर प्रत्याशी है लेकिन मदनलाल ने स्वयं कबूल किया है कि वह राजनीति में नए हैं और उन्हें जनता के सहयोग के अत्यंत आवश्यकता है। मदनलाल को टिकट मिलने के बाद हमीरपुर जिला कांग्रेसियों के विरोध स्वर भी मुखर हुए। लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा समझाने पर वे कुछ शांत हुए।

अब देखना यह है कि हमीरपुर सीट पर एआईसीसी का फैसला कितना कारगर साबित होता है।

Previous articleHimachal may create separate ‘investigative’ cadre
Next articleWhy Mandi Parliamentary seat requires a third alternative?

No posts to display